लोकोक्तियाँ
लोकोक्ति -
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* लोकोक्तियाँ समाज में प्रचलित कथन होते हैं।
यह एक पूर्ण वाक्य होता है, इसका प्रयोग एक
स्वतन्त्र वाक्य के रूप में ही होता है।
** लोकोक्तियाँ -- ---- अर्थ **
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1 * गिरगिट की तरह रंग बदलना -- एक मत पर ना टिकना ।
2 * घर की मुर्गी दाल बराबर – सहज प्राप्त वस्तु को आदर नहीं मिलता ।
3 * चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात – सुख
थोड़े ही दिन का होता है ।
4 * चिराग तले अँधेरा – निकट में ही असहज प्रवृति ।
5 * चोर की दाढ़ी में तिनका – दोषी हमेशा
चौकन्ना रहता है ।
6 * छोटा मुँह बड़ी बात – अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना ।
7 * जिसकी लाठी उसकी भैंस – शक्तिसम्पन्न का प्रभाव रहना ।
8 * जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ –
परिश्रम से सफलता मिलती है ।
9 * जैसी करनी वैसी भरनी – जैसा काम, वैसा
परिणाम ।
10 * तीन में, न तेरह में – किसी महत्व का नहीं होना ।
11 * दाल-भात में मूसलचन्द – किसी बात में दखत होना ।
12 * नाच न जाने आँगन टेढ़ा -- अपनी कमियों को दूसरों पर तोपना ।
13 * न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी – मूल कारण को ही समाप्त करना ।
14 * नेकी और पूछ-पूछ – भलाई के लिए अनुमति क्या ?
15 * बिल्ली के गले में घंटी – कठिन काम पूरा करना ।
16 * बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय – जैसा कर्म वैसे फल की प्राप्ति ।
17 * भूखे भजन न होय गोपाला – आवश्यकताओं की पूर्ति के बिना सब कुछ व्यर्थ ।
18 * मरता क्या न करता – मजबूरी में आदमी सब कुछ करता है ।
19 * मुँह में राम बगल में छुरी – ऊपर से मित्र, अन्दर से शत्रु ।
20 * समरथ को नहीं दोष गोसाईं – सामर्थ्यवान को कोई दोष नहीं ।
21 * साँच को आँच नहीं – सच्चे आदमी को कोई
खतरा नहीं ।
22 * सिर मुँडाते ओले पड़े – शुरू में ही विघ्न पड़ना ।
23 * होनहार बिरवान के होत – भविष्य के गुण
प्रारम्भ में ही दिखाई देत हैं ।
24 * हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या ?
25 * रस्सी जल गई, पर ऐंठन न गई – पतन के बाद भी अहंकार ।
।।।।।।।।।।।।। धन्यवाद ।।।।।।।।।।।।।।।
R. L. JAT
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