Friday, March 11, 2016

लोकोक्तियाँ



लोकोक्ति -

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* लोकोक्तियाँ समाज में प्रचलित कथन होते हैं।
यह एक पूर्ण वाक्य होता है, इसका प्रयोग एक
स्वतन्त्र वाक्य के रूप में ही होता है।


** लोकोक्तियाँ -- ---- अर्थ **

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1 *  गिरगिट की तरह रंग बदलना -- एक मत पर ना टिकना ।



2 *  घर की मुर्गी दाल बराबर – सहज प्राप्त वस्तु को आदर नहीं मिलता ।



3 *  चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात – सुख
थोड़े ही दिन का होता है ।




4 *  चिराग तले अँधेरा – निकट में ही असहज प्रवृति ।



5 *  चोर की दाढ़ी में तिनका – दोषी हमेशा
चौकन्ना रहता है ।



6 *  छोटा मुँह बड़ी बात – अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना ।



7 *  जिसकी लाठी उसकी भैंस – शक्तिसम्पन्न का प्रभाव रहना ।



8 *  जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ –
परिश्रम से सफलता मिलती है ।




9 *  जैसी करनी वैसी भरनी – जैसा काम, वैसा
परिणाम ।



10 *  तीन में, न तेरह में – किसी महत्व का नहीं होना ।



11 *  दाल-भात में मूसलचन्द – किसी बात में दखत होना ।



12 *  नाच न जाने आँगन टेढ़ा -- अपनी कमियों को दूसरों पर तोपना ।



13 *  न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी – मूल कारण को ही समाप्त करना ।



14 *  नेकी और पूछ-पूछ – भलाई के लिए अनुमति क्या ?



15 *  बिल्ली के गले में घंटी – कठिन काम पूरा करना ।



16 *  बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय – जैसा कर्म वैसे फल की प्राप्ति ।





17 *  भूखे भजन न होय गोपाला – आवश्यकताओं की पूर्ति के बिना सब कुछ व्यर्थ ।



18 *  मरता क्या न करता – मजबूरी में आदमी सब कुछ करता है ।



19 *  मुँह में राम बगल में छुरी – ऊपर से मित्र, अन्दर से शत्रु ।



20 *  समरथ को नहीं दोष गोसाईं – सामर्थ्यवान को कोई दोष नहीं ।




21 *  साँच को आँच नहीं – सच्चे आदमी को कोई
खतरा नहीं ।



22 *  सिर मुँडाते ओले पड़े – शुरू में ही विघ्न पड़ना ।



23 *  होनहार बिरवान के होत – भविष्य के गुण
प्रारम्भ में ही दिखाई देत हैं ।



24 *  हाथ कंगन को आरसी क्या – प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या ?



25 *  रस्सी जल गई, पर ऐंठन न गई – पतन के बाद भी अहंकार ।



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।।।।।।।।।।।।। धन्यवाद ।।।।।।।।।।।।।।।


                                     R. L. JAT

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